Saturday, September 19, 2009

यदि आज है दुख
यदि आज है दु:ख कल सुख होगा, यारों, ग़म से घबराना क्या,जो बीत गया उसके बारे में सोच-सोच पछताना क्या।
एक रंग लहू का है सब का, एक डोर से सब हैं बँधे हुए,एक नूर से है दुनिया रोशन, फिर अपना क्या बेगाना क्या।
सच्चों को तो हर दौर में दुनिया, मूरख, पागल कहती है,फिर भी सच का दामन थामो, सोचो न कहेगा ज़माना क्या।
पौ फटने से पहले अंधियारा और घना हो जाता है,उस पल जो हिम्मत हार गया, लिखना उसका अफ़साना क्या।
जो ज़ुल्म और ना-इंसाफ़ी को अनदेखा कर जाते हैं,ऐसों का ज़िंदा रहना क्या, और ऐसों का मर जाना क्या।
है परवाने का काम शमा के आगे-पीछे मंडराना,नज़दीक शमा के आकर भी, जो जला नहीं, परवाना क्या।
कहते हैं मित्र वही होता है जो विपदा में काम आए,"बंधू" जो मुश्किल के आते ही, टूटे वो याराना क्या।

Thursday, September 17, 2009


चलो
चलो हम आजसुनहरे सपनों केरुपहले गांव मेंघर बसाएँझिलमिल तारों की बस्ती मेंपरियों की जादू छड़ी सेअपने इस कच्चे बंधन कोछूकर सोने का बनाएँतुम्हारी आशा की राहों परबाँधे थे जो ख़्वाबों से पुलचलो आज उस पुल से गुज़रेंऔर क्षितिज के पार हो आएँहवा ने भी चुराई थीकुछ हमारी बातों की खनकरिमझिम पड़ती बूँदों के संगचलो उन स्मृतियों में घूम आएँबाँधी थीं सीमाएँ हमनेअनकही कुछ बातों में जोचलो एक गिरह खोल करआज बंधनमुक्त हो जाएंचलो हम आजसुनहरे सपनों केरुपहले गाँव मेंघर..बसायें .....